मन की कमजोरी पाप कराती
भूल होना सहज मानवीय दुर्बलता है । ऐसा कोई व्यक्ति नहीं , जिससे कभी भूल न हुयी हो । अर्थात प्रत्येक मनुष्य में यह कमजोरी कम या अधिक मात्र में पाई जाती है । कहीं इसका स्वरूप चारित्रिक तो कहीं आध्यात्मिक , कहीं व्यावसायिक तो कहीं अनुशासनात्मक है । कहीं इसका नाम अपराध तो कहीं पाप , कहीं चोरी तो कही अवज्ञा , कहीं दुष्कर्म तो कहीं भ्रष्टाचार है । मनुष्य द्वारा की गयी भूलें मानवता के लिए अभिशाप ही हुवा करती है , आत्म-संयम जहाँ इनसे बचने-बचाने का दिशा बोध कराते हैं तथा वहीँ प्रायश्चित और पश्चाताप के द्वारा आत्मशुद्धि और भूल सुधार का स्वस्थ प्रयास किया जाता है ।
वास्तव में पश्चाताप वह अग्नि है , जिसमें तपकर भ्रमित और भूला-भटका मन शुद्ध स्वर्ण बन जाता है . इस प्रकार पश्चाताप मन के शुद्धिकरण की एक कठिन प्रक्रिया है । भूल कर बैठना जितना आसान होता है और उसे स्वीकार करना उतना ही कठिन होता है । ये प्रयत्न ही उन्हें क्रूर , जघन्य , अपराधी और महापापी बना देते हैं । जो लोग अपनी भूल या अपराध को महात्मा गाँधी की भांति सहजता से स्वीकार कर लेते हैं , वे क्षीणकाय होते हुवे भी असीम आत्मबली होते हैं , वे तुच्छ होते हुवे भी महान होते हैं । डाकू रत्नाकर को भी जब अपनी भूल और अनैतिक कृत्य का आभास हुवा तो प्रायश्चित और पश्चाताप के पश्चात वे महर्षि वाल्मीकि कहलाये तथा रामायण की रचना कर वन्दनीय बने ।%%%%%%%%%
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