रविवार, 24 अप्रैल 2011

चुप रहने में भला

चुप रहने में भला 


मौन मन की वह आदर्श अवस्था है , जिसमें डूबकर मनुष्य परम शांति का अनुभव करता है । मन की चंचलता समाप्त होते हुवे ही मौन की दिव्य अनुभूति होने लगती है । मौन मन को ऊर्ध्वमुखी बनाता है तथा इसकी गति को दिशा-विशेष में तीव्र कर देता है ।  मौन चुप बने रहना नहीं है , बल्कि अनावश्यक विचारों से मुक्ति पाना है ।  अधिक बोलना व्यक्तित्व पर ग्रहण लगने के समान है । आवश्यकता से अधिक बोलना _ शिष्टता , शालीनता और मर्यादाओं का उल्लंघन करना होता है । 




मौन मनुष्य की ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति की अमोघ शक्ति है । प्रकृति का क्षण-क्षण अखंड महामौन से व्याप्त है । जो प्रकृति के नियम का उल्लंघन करता है , वह अपनी मानसिक शक्तियों से वंचित रह जाता है । सृष्टि में फैले सभी तत्वों में व्याप्त अखंड मौन के एक अंश को भी यदि आत्मसात किया जा सके तो समझना चाहिए की हम अपपनी गुप्त शक्तियों के स्वामी बनने की राह पर आ गये हैं । मौन के वृक्ष पर शांति के फल लगते हैं । मौन कभी हमारे साथ विश्वासघात नहीं करेगा । मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं ।&&&&



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