शनिवार, 23 अप्रैल 2011

दूसरों को दुःख नहीं

दूसरों को दुःख नहीं 






शरीर वाणी अथवा मन से काम , क्रोध , लोभ , मोह , भय आदि मनोवृत्तियों का साथ किसी प्राणी को शारीरिक , मानसिक पीड़ा पंहुचाना हिंसा है और इससे बचना अहिंसा है । योगदर्शन में पांच यमों _ अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह में इसे सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है । गौऊ , अश्व आदि पशुओं का उचित प्रकार से पालन-पोषण करने और उनकी सेवा करते हुवे नियमित रूप से दूध आदि सामग्री प्राप्त करना तथा सेवा लेना हिंसा नहीं है , परन्तु उनकी रक्षा का ध्यान न करते हुवे क्रूरता से उनकी सेवा लेना हिंसा है. शिक्षा देने हेतु विद्यार्थी को ताड़ना देना , रोग का निदान करते हुवे आपरेशन करना हिंसा नहीं है । पर जब ये ही कार्य द्वेष से किये जाते , तो ये हिंसा कहलाते हैं ।

हिंसा और अहिंसा का कर्म से नहीं भावना से है । अहिंसा और हिंसा के स्वभाव वाले व्यक्तियों के बीच संघर्ष चलता रहा है । विश्व में जितने महापुरुष हुवे हैं सभी ने अहिंसा को प्रमुख स्थान दिया है तथा प्राणी मात्र को अहिंसा के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया है । महात्मा बुद्ध , महावीर , महात्मा गाँधी आदि मुख्य उदाहरण हैं । आज विश्व में चारों ओर आतंकवाद का खतरा व्याप्त है । ऐसे समय में अहिंसा ही ऐसा मार्ग है जिस पर चलकर विजय प्राप्त की जा सकती है । अहिंसा से न केवल समस्त प्राणियों तक अपितु पूरे विश्व का कल्याण सम्भव है । समाज में रहकर एक दूसरे के काम आना , आत्मीयता ओर भाईचारे को बढ़ावा देना सभ्य समाज की आवश्यकता है । इसके लिए हमें पूरी ईमानदारी के साथ राष्ट्र व समाज को परिवार मानकर उन दायित्वों का निर्वहण करना होगा , जिससे समाज में खुशहाली आ सके । इसी कारण अहिंसा को परम धर्म कहा है ।

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