रविवार, 24 अप्रैल 2011

डटे रहो जीत पक्की है

डटे रहो जीत पक्की है 




मानव-जीवन एक संघर्ष की गाथा है । संकटों से घबराने की आवश्यकता नहीं है , उनसे निपटने का विचार दृढ़ करना चाहिए । समय पर संकट ऐसे छंट जाते हैं , जैसे शेर के आने पर हाथियों का दल इधर-उधर हो जाता है ।  यह भाग्य की बात नहीं है , कर्म की गति है । जीवन में सद्कर्म ही संघर्षों से उबारता है । जीवन -संग्राम को सद्कर्म से जीत सकते हैं ।


मनुष्य समस्याओं से घिरा होता है , उसके चारों ओर विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । तब वह सोचने को विवश हो जाता है कि उसकी क्या गलतियाँ हुयीं और उससे कौन से पाप हुवे । ऐसे में उसे सुधारात्मक उपायों को अपनाना पड़ता है । आत्मसुधार सबसे बड़ा मार्ग है और साथ ही सरलता , सरसता व सफलता की तृप्ति भी है । आत्मानुशीलन से मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है । अन्यथा पग-पग पर कठिनाइयाँ आती हैं।



 वे असीमित इच्छाओं में इतने उलझे रहते हैं कि उद्देश्य को ज्ञात करने की आवश्यकता ही अनुभूत नहीं होती । जीवन मानव मन की चपलता से पल-पल प्रभावित होता है । वह इतना निर्बल हो जाता है कि बुराइयाँ उसके भीतर रोगों की तरह प्रवेश कर जाती हैं । अच्छाईयों के पास जाने का साहस खो बैठता है । परमात्मा तो आत्म-समर्पण से अपनी शरण प्रदान करते हैं । फिर जिन्दगी ठहर जाती है और जीव की लय 
आत्मा से लग जाती है । आत्मोद्धार का सच्चा पथ यहीं से प्रारम्भ होकर यहीं समाप्त हो जाता है ।####


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