मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

जो भी होगा देखा जायेगा आगे

जो भी होगा देखा जायेगा आगे 






मानव-मन रात और दिन कल्पनाओं के ताने-बाने बुनता रहता है । हवाई महल निर्मित करता रहता है तथा नित-नित नूतन-नूतन योजनाओं का सृजन निज मनोभूमि करता रहता है । संकल्पानुसार कार्य पूर्ण होने पर अथवा योजनाओं में आंशिक सफलता प्राप्त होने पर अहं का भाव एवं कर्त्तृत्व का भाव जागृत हुवे बिना नहीं रहता। वह मानता है कि यह कार्य उसने किया है । वह ऐसा तभी सोचता है जब कार्य पूर्ण हो जाता है अथवा उत्तम मनोनुकूल योजना में सफलता मिल जाती है । किसी का बुरा हो जाने पर या असफलता मिल जाने पर उसमें अंतर ध्वनि प्रस्फुटित होती है और वह कहने लगता है कि जो हो गया सो हो गया और उसे धैर्य ही धारण करना होता है ।

अस्तु , यह विचार और एक विश्वास अपने में जगा लें कि मैं जगत के किसी भी पदार्थ को कार्य-सिद्ध करने वाला नहीं हूँ । किसी का या स्वयं का अच्छा -बुरा करना-कराना हमारे ऊपर निर्भर नहीं है । प्रत्येक द्रव्य स्वाधीन है तथा स्वत: सिद्ध होने वाला है तथा जिसका जिस समय प्रकट होना निश्चित है वह तभी होगा ।  अरे जीव की बात तो दूर , परन्तु भगवान भी उनमें परिवर्तन करने में सक्षम नहीं है ।जो जैसा है , वैसा ही ज्ञान में झलकता है , कंतु किस समय क्या होना है यह हमारे ज्ञान का विषय नहीं है , अत: भवितव्यता में अडिग विश्वास रखते हुवे पुरुषार्थ में तत्पर रहना चाहिए ।&&&&&&&&&&&&

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