जाको रखे साइंया
जो प्रभु की शरण में आ जाता है , उसके सभी कार्य प्रभु पूर्ण करते हैं । प्रभु की शरण में रहने वाला मनुष्य विश्वबन्धु और संसार का सच्चा सेवक बन जाता है और जब मनुष्य भगवान की शरण में है तो उसे जीवन में सब कुछ मिलता है । जैसे सूर्य के सामने अंधकार नहीं टिकता है , उसी तरह प्रभु की शरण में रहने वाले के सामने कोई भी समस्या असमाधित नहीं रहती । जो मनुष्य प्रभु की शरण में नहीं है , वह किसी भी रूप में सुख और शांति को प्राप्त नहीं कर पाता क्योंकि ऐसे मनुष्य को अपनी ताकत , अपनी विद्या और अपने ज्ञान पर घमंड होता है । वह समझता है कि मैं ही सब कुछ हूँ ।
जो प्रभु की शरण में आ जाता है , उसके सभी कार्य प्रभु पूर्ण करते हैं । प्रभु की शरण में रहने वाला मनुष्य विश्वबन्धु और संसार का सच्चा सेवक बन जाता है और जब मनुष्य भगवान की शरण में है तो उसे जीवन में सब कुछ मिलता है । जैसे सूर्य के सामने अंधकार नहीं टिकता है , उसी तरह प्रभु की शरण में रहने वाले के सामने कोई भी समस्या असमाधित नहीं रहती । जो मनुष्य प्रभु की शरण में नहीं है , वह किसी भी रूप में सुख और शांति को प्राप्त नहीं कर पाता क्योंकि ऐसे मनुष्य को अपनी ताकत , अपनी विद्या और अपने ज्ञान पर घमंड होता है । वह समझता है कि मैं ही सब कुछ हूँ ।
प्रभु की शरण में न रहने वाला व्यक्ति तरह-तरह के कष्टों से परेशान रहता है और अपने आपको सब कुछ समझ लेता है , परिणामत: वह सदैव भटकता रहता है । मनुष्य अन्य योनियों की अपेक्षा सबसे ज्ञानी और विवेकी होता है । भ्रमित होने पर मनुष्य अविवेकी मनुष्य की तरह सामान्य जीवन बिताता है । वह अपनी सारी क्षमताएं और समस्त वैभव अविवेक के कारण गवां बैठता है । जब सीमित वस्तुओं से कार्य चल सकता है तो मनुष्य क्यों निर्जीव वस्तुओं के चक्कर में पड़कर भटकता रहता है । एक प्रसिद्ध दोहा है _ ' जाको रखे साइंया मार सके न कोय । बाल न बांका कर सके चाहे जग बैरी होय ॥ ' ******
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