अपने को काबू में रखिये
ब्रह्मचर्य की महिमा को हमने समझा ही नहीं है ; यदि समझा भी है मात्र स्त्री -विषयक राग को कम करना ही हमारी दृष्टि में ब्रह्मचर्य की परिभाषा बनकर रह गया है । परन्तु यह विचारधारा अत्यंत ही संकीर्ण है । ब्रह्मचर्य से तात्पर्य आत्मस्वरूप में रमण करना है और यह रमण तब होगा जब इन्द्रिय विषयों से विरक्ति के भाव को जागृत करेगी । इन्द्रिय एक नहीं पांच हैं और इनमें से किसी एक विषय के प्रति भी आसक्ति का भाव बना रहना अर्थात ब्रह्मचर्य से विमुख होना है । स्पर्श इन्द्रिय के आठ प्रकार के स्पर्शों में रह का अभाव होना ब्रह्मचर्य है । इसी तरह रसना इन्द्रिय-सम्बन्धी पांच रसों में , दुर्गन्ध-सुगंध में , अनेक-रंगों के देखने में तथा अनुकूल-प्रतिकूल वाणी का श्रवण करने समयानुकूल जाग्रति का होना ही ब्रह्मचर्य है ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
ब्रह्मचर्य की महिमा को हमने समझा ही नहीं है ; यदि समझा भी है मात्र स्त्री -विषयक राग को कम करना ही हमारी दृष्टि में ब्रह्मचर्य की परिभाषा बनकर रह गया है । परन्तु यह विचारधारा अत्यंत ही संकीर्ण है । ब्रह्मचर्य से तात्पर्य आत्मस्वरूप में रमण करना है और यह रमण तब होगा जब इन्द्रिय विषयों से विरक्ति के भाव को जागृत करेगी । इन्द्रिय एक नहीं पांच हैं और इनमें से किसी एक विषय के प्रति भी आसक्ति का भाव बना रहना अर्थात ब्रह्मचर्य से विमुख होना है । स्पर्श इन्द्रिय के आठ प्रकार के स्पर्शों में रह का अभाव होना ब्रह्मचर्य है । इसी तरह रसना इन्द्रिय-सम्बन्धी पांच रसों में , दुर्गन्ध-सुगंध में , अनेक-रंगों के देखने में तथा अनुकूल-प्रतिकूल वाणी का श्रवण करने समयानुकूल जाग्रति का होना ही ब्रह्मचर्य है ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
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