रविवार, 24 अप्रैल 2011

मन के हारे हार

 मन के हारे हार 




मन का महत्त्व एवं उसकी महिमा अपार है । इसकी शक्ति असीम है । इसको जितना मंथन करो उतने ही अनेक रत्न प्राप्त होते हैं । इसकी गहराई में जितना हम प्रवेश करते हैं , उतना ही हमें गाम्भीर्य उपलब्द्ध होता है । मन को एकाग्र करना सरल नहीं है , पर साधना करने पर इसे साध्य बनाया जा सकता है । 


' मन के जीते जीत है और मन के हारे हार ' तथा ' एक साधे सब सधै ' आदि उक्तियाँ मन की निर्मलता और एकाग्रता के सदपरिणामों को परिभाषित करते हैं ।  मन्त्रों का सम्बन्ध मन से ही है _ मननात जायते इति मन्त्र: । साधना उपासना में मन को ही वशीभूत किया जाता है । मन को तो मूलाधार चक्र से ही मन को वश में करने की साधना प्रारम्भ हो जाती है । क्योंकि मन के मूलभूत बीज अक्षरों में वशीकरण का बहुत महत्त्व है । मन को वश में करने की अंतिम अवस्था समाधि है । इससे पहले धारणा एवं ध्यान द्वारा मन को अभ्यस्त बनाया जाता है । इस सबमें सर्वप्रथम एकाग्रता का ही महत्त्व है ।

बुद्धि का भोजन ज्ञान है , जो सत्साहित्य और सतसंगति से ही उपलब्द्ध होता है । इस दिशा में जितने हम परिपक्व होते हैं उतने ही जीवन की वास्तविकता के निकट होते हैं । हमारी मजबूत मानसिक शक्ति न केवल साहसिक और कठिन कार्य कराने में अहम भूमिका निभाती है , बल्कि रोगों के लड़ने में रक्षा कवच भी है । मन में जैसे विचार तैरते हैं , हम वैसे ही बन जाते हैं । मस्तिष्क हमारे व्यक्तित्व निर्माण की भूमिका तय करता है ।महत्ता के आधार पर मन को देवता की श्रेणी में रखा गया है आशीर्वाद , कृपा और प्रणाम जैसे तत्व मन के मजबूत सूत्रों पर ही गुंथें हुवे हैं । यह सर्व विदित है कि पूरे मन से की गयी प्रार्थना ही सर्वदा फलित होती है ।&&&&&

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