व्यक्ति प्रात:काल जागता है , उसे लगता है की वह जागा हुवा है , पर तथ्य यह है कि वह जागा हुवा नहीं है । उसका यह भ्रम उसे आजीवन दौड़ाया करता है । कोई धनार्जन की भूमिका बनाये रखता है और लोक-यश की पूर्ति के लिए खोखला प्रदर्शन करता रहता है । इससे इतर कुछ लोग पद और प्रतिष्ठा की दौड़ में ही लगे रहते हैं एवं कुछ प्रपंच में सारा जीवन बिता देते हैं और साथ ही कोई दूसरे की प्रगति देखकर ईर्ष्या से जल-भुन जाते हैं ।
जागता वह है जो वैराग्य का मुखापेक्षी होता है । लोकसेवी जागता है । प्रेम के दीवाने जागते हैं । जागने का अर्थ है स्वयं को जान लेना । जब व्यक्ति स्वयं को जान लेता है तो वह जागरण की बेला कही जाती है । संसार सो रहा है , नींद में गाफिल है । जाग्रत स्वप्न को कहता है कि हम जागे हुवे हैं ।
जागरण ही मानव जीवन की सार्थकता है । सामान्यजन मानव जीवन को कैसे सार्थक किया जाये , इस बात को जानते ही नहीं हैं और जानने की कोशिश भी नहीं करते । यह मानव जीवन भोग के लिए नहीं मिला है । जो यह नहीं सोचते हैं , उन्हें जीवन के अंतिम समय में पछताना पड़ता है । जब शरीर पूरी तरह असमर्थ हो जाता है। समय रहते यदि हम अपने आप से और मानव जीवन के उद्देश्य से भलीभांति परिचित हो गये तो तभी हम अपना जीवन सार्थक कर सकेंगे ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
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