भारत देश ही नहीं संस्कृति
भारत उस देश का नाम है , जो अपने में एक विशिष्ट आध्यात्मिक संस्कृति को संजोये हुवे है । भारत विश्व-गुरु रहा है । उसी ने बहुत पहले यह उद्घोष किया _ ' असतो मा सद्गमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय , मृत्योर्मा अमृतं गमय , अर्थात असत्य से सत्य की ओर , अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ना । भारत ने इसी को जीवन का मूलमंत्र माना था और विश्व को भी भारत ने यह संदेश दिया ।
भर्तीयभारत उस देश का नाम है , जो अपने में एक विशिष्ट आध्यात्मिक संस्कृति को संजोये हुवे है । भारत विश्व-गुरु रहा है । उसी ने बहुत पहले यह उद्घोष किया _ ' असतो मा सद्गमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय , मृत्योर्मा अमृतं गमय , अर्थात असत्य से सत्य की ओर , अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ना । भारत ने इसी को जीवन का मूलमंत्र माना था और विश्व को भी भारत ने यह संदेश दिया ।
सत्य , ज्ञान , आनन्द और अमरत्व को इस यात्रा में जो चार पड़ाव मिलते हैं , उन्हें हमारे ऋषियों ने धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष शीर्षक चार पुरुषार्थों के रूप में व्याख्यायित किया है । इनके माध्यम से भारतीय ऋषियों ने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन में जो संतुलन और सामंजस्य स्थापित किया है , वह अन्यत्र दुर्लभ है । यहाँ अर्थ और काम भौतिक जीवन के पुरुषार्थ हैं तथा धर्म और मोक्ष आध्यात्मिक जीवन के । चारों पुरुषार्थों में धर्म को सर्वप्रथम स्थान दिया गया है एवं ' धर्मो रक्षति रक्षत: ' अर्थात धर्म की रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है । यह कहकर धर्म की महत्ता स्थापित की गयी है । सुदूर अतीत में ' सर्वभूत हितेरत: ' अर्थात ' वसुधैव कुटुम्बकम ' की जो उद्घोषणायें की गयी हैं । ये समस्त एक धार्मिक चेतना का ही परिणाम है ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
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