बुधवार, 6 अप्रैल 2011

घर की खिड़की खोलो


घर की खिड़की खोलो 






 यद्यपि यह पूर्णत: सत्य है कि राग आग है और दुःख का कारण है । परन्तु राग की पूर्ति के अभाव में उत्पन्न द्वेष ज्वालामुखी से भी अधिक भयंकर है ।


राग में प्राणी दूसरे को चाहता है , अपनाता है , उसके पीछे मरने -मिटने को तैयार रहता है और द्वेष में वह बिछुड़ता है , छूटता है और दमन करता है ।द्रष्टव्य है कि महारानी कैकयी के मन में जब तक राग की साम्यता थी तब तक चारों पुत्रों को एक साथ समान रूप से चाहती थीं । परन्तु जब उन्हें यह लगा कि राम के कारण मेरे पुत्र भरत को राज -गद्दी मिलने वाली नहीं है । तब उसे राम बाधक प्रतीत हुवे तो द्वेष का जन्म हुवा और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास दिला दिया । मातृत्व -स्नेह द्वेष की अग्नि में प्रज्वलित हो भस्म हो गया ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&



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