लाभ को लोभ में नहीं बदलिए
प्राकृत भाषा में लोभ के लिए लोह का प्रयोग किया जाता है । हिंदी में लोह का अर्थ लोहा होता है । यह एक विशेष खनिज पदार्थ के लिए प्रयुक्त होता है । परन्तु इसकी यहाँ संगति सुसंगत बैठती है । जब लोहे को शुद्ध किया जाता है और उसको किसी आकार-प्रकार में ढ़ाल कर बहुमूल्य बनाया जाता है तो उसे अग्नि में तपाया जाता है । विशेषता यह है कि लोहे को पीटा जाता है और घनों की चोट लोहे पर ही मारी जाती हैं , परन्तु लोहे की संगति के कारण अग्नि को भी घनों की चोटें सहनी पडती हैं । वैसे अग्नि को पीटा नहीं जाता , अपितु पूजा जाता है । लोहे की संगति के कारण अग्नि को भी मार सहने को मजबूर होना पड़ता है ।
प्राकृत भाषा में लोभ के लिए लोह का प्रयोग किया जाता है । हिंदी में लोह का अर्थ लोहा होता है । यह एक विशेष खनिज पदार्थ के लिए प्रयुक्त होता है । परन्तु इसकी यहाँ संगति सुसंगत बैठती है । जब लोहे को शुद्ध किया जाता है और उसको किसी आकार-प्रकार में ढ़ाल कर बहुमूल्य बनाया जाता है तो उसे अग्नि में तपाया जाता है । विशेषता यह है कि लोहे को पीटा जाता है और घनों की चोट लोहे पर ही मारी जाती हैं , परन्तु लोहे की संगति के कारण अग्नि को भी घनों की चोटें सहनी पडती हैं । वैसे अग्नि को पीटा नहीं जाता , अपितु पूजा जाता है । लोहे की संगति के कारण अग्नि को भी मार सहने को मजबूर होना पड़ता है ।
इसी प्रकार हमारी यह आत्मा स्वभाव में रहने पर चोटें खाने से सुरक्षित रहती है । सुरक्षित ही नहीं परमात्मा सदृश पूज्य रहती है । परन्तु अनादि काल से इसने लोभ रूपी लोहे की संगति की है , जिसके परिणामस्वरूप कभी नरक गति के भयंकर घनों की दारुण असह्य चोटें सहने को मजबूर हो जाता है । कभी इस जन्म की दर्दनाक पीडाएं सहन करना पड़ता है । मनुष्य की गति को पाकर भी अहंकार रूपी घनों की चोटें सहने को तैयार रहना पड़ता है और वासना के लोभ में अनंत पीडाएं सहन करता है । इस सबका मूल कारण लोभ ही है और उससे छुटकारा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ।
प्रमुख कल्मषों में लोभ एक महत्त्वपूर्ण कल्मष है । पर यह सामान्यतया समझ में नहीं आता , परन्तु अन्तरंग में इसका साम्राज्य बहुत विशाल है । यह कभीकरने की भावना के रूप में उभरता है , कभी समाज और देश में यश प्राप्त करने की चाह के रूप में अभिव्यक्त होता है । कभी मान-सम्मान पाने की भावना के रूप में प्रत्यक्ष होता है और कभी रूप , कुल , जाति सौन्दर्य के रूप में दिखाई देता है । किसी भी प्रकार की चाह के रूप में मन में भाव अंकुरित होने पर उस वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रयत्न प्रारम्भ हो जाते हैं ।
राज्य-वैभव प्राप्ति के लोभ में दुर्योधन ने पांडवों के साथ छल किया । लाख का महल बनाकर अपने भाईयों नष्ट करने की योजना क्रियान्वित कर ली । वे बच गये यह उनका सौभाग्य था । रूप-सौन्दर्य के लोभ में कितने निरीह प्राणियों की जानों को दग्ध किया जा रहा है । पैसे का लोभ भाई-भाई बीच दीवार खड़ी कर रहा है । पुत्र -पिता पर गोली चला रहा है और पिता पुत्र को घर से निकाल रहा है । यह लोभ ही हमारी दुर्गति का प्रमुख कारण है । हमें अपने को लोभ सी दूर रखने का प्रयास करना चाहिए ।***************
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