मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

मान नहीं अपितु मनाना सीखें

मान नहीं अपितु मनाना सीखें 





योग्य एवं अनुकूल आचरण करने पर गौरवान्वित होना स्वाभिमान है । प्राय: मान या अभिमान को ही स्वाभिमान समझ लिया जाता है , किन्तु इन दोनों में बहुत अंतर है । मान मीठा जहर है , स्लो पोयजन है और वह धीमे-धीमे मृत्यु के समीप ले जाने वाला है ।  अपने और पराये को अशांति की ज्वाला में जलाने वाला है । इसके विपरीत स्वाभिमान पीयूष है , अमृत है और अमरत्व की अमर दिशा की ओर ले जाने वाला है ।*************************************************



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