शनिवार, 2 अप्रैल 2011

टाइम नहीं

टाइम नहीं 


व्यस्तता एक रूप से त्रस्त कर रही है , पीड़ित कर रही है और बेचैन कर रही है । ऐसे व्यक्ति एक पल भी शांति का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं । न दिन में प्रेम से भोजन और न रात्रि में चैन की नींद ले पा रहे हैं । जब देखो तब इनके मुख से यही निकलता है कि वे व्यस्त हैं तथा उनके पास टाइम ही नहीं है । हमें एक बार अपने में विचार करके देखना होगा कि हम किधर जा रहे हैं ? और हमें किधर जाना था ? क्या मात्र सांसारिक शरीर-भोगों में व्यस्त रह जिन्दगी व्यतीत करने हेतु ही इस पावन सम्बन्ध को प्राप्त किया था ।



आज प्रत्येक मानव के मुख से प्राय: यही सुनने को मिलता है कि क्या करें हमारे पास बिलकुल भी समय नहीं है । आजकल बहुत व्यस्त हैं ; परन्तु देखना यह है कि हम कहाँ व्यस्त हैं ? किन क्रियाओं में व्यस्त हैं ? ऐसा क्या कार्यभार हमारे सिर पर है जिस कारण हमें खाने , पीने , सोने व अपने बच्चों से बात करने की भी फुर्सत नहीं है ? अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि हमारा समय धनार्जन करने में व्यस्त है । साथ ही भोग -उपभोग की सामग्री का सृजन , रक्षण एवं संवर्द्धन में ही हम व्यस्त रहते हैं । इनमें हम इतने व्यस्त रहते हैं कुलाचार , लोकाचार आदि को निभाने का भी हमारे पास समय नहीं है । हमारी इस व्यस्तता ने हमें भाई-भाई से , माता-पिता से , पड़ोसी जनों से तथा अपने कुटुम्बियों से बहुत दूर लाकर खड़ा कर दिया है ।





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