आनन्द एक अनुभूति है । यह अनुभति आंतरिक खोज पर आधारित है । चित्त वृत्तियों को निरुद्ध करके ही व्यक्ति आनन्द के स्तर को प्राप्त कर सकता है । अनेक कोषों में आन्दमय कोष भी विशिष्ट स्थिति को रखता है । आनन्द व्यक्ति विभिन दशाओं एवं विविध परिस्थितियों में प्राप्त कर सकता है । किसी को सांसारिक प्रक्रियाओं में आनन्द आ सकता है । पर यह आनन्द स्थायी नहीं रह पाता ।
काव्य या साहित्य का आनन्द ब्रह्मानन्द के सहोदर माना गया है । यह आनन्द भी समकक्ष होते हुवे भी स्थायी आनन्द की श्रेणी में नहीं आ पाता है । वास्तविक एवं सच्चा आनन्द तो मानसिक अनुभूति है , जो साधना के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। साधक को साधन की पवित्रता के साथ परम आनन्द की अनुभूति हो सकती है । सत -चित और आनन्द की अनुभति ही सच्चिदानन्द है । *****