रविवार, 15 मई 2011

वनिता

वनिता  


वनिता अर्थात स्त्री है । विवाह का अर्थ एक बंधन ही है । विवाह विशेष रूप से वहन करने की स्थिति का नाम है। विवाह होते ही वह सोच लेता है कि अब मैं दो हो गया । बस उह्का चिन्तन बदल जाता है और जिम्मेदारी का अनुभव भी वह करने लगता है । परतन्त्रता की बेड़ियाँ उसके पैरों में पड़ जाती हैं ।

उस विवाहित युवक को खर्च करने के साथ-साथ कमाने की चिंता भी बेचैन करने लगती है । अब वह कुछ भी करने के पूर्व विचार करने लगता है । उसके हर कार्य पर नियंत्रण हो जाता है । स्पष्ट रूप से वह पराधीन हो जाता है । एक तरह से वह स्वेच्छा से अपने पैरों में बंधन डाल देता है । वह पराधीन हो जाता है । वह बेड़ियों में बंध जाता है । जिस तरह बेड़ियों से आबद्ध व्यक्ति भाग नहीं सकता उसी तरह जिसके पैरों में वनिता रूपी बेड़ियाँ पड़ी हुयी हैं , वह कहीं आ जा नहीं सकता ।

चिंतनीय यह है कि क्या वास्तव में वनिता पुरुषों के लिए विविध बेड़ियाँ हैं ? सच तो यह है कि अन्तरंग में विद्यमान वासना रूपी वनिता ही वह सुदृढ़ बेडी है जो बाह्य स्त्री को बेडी बना देती है । यदि अन्तरंग में वासना रूपी वनिता विद्यमान नहीं है तो बाह्य वनिता किंचित मात्र भी पराधीन बनाने में सहायक नहीं है । बाह्य वनिता ही बेडी बनकर पराधीनता अंगीकार कराने में निमित्त नहीं कर्त्ता होती है । अस्तु , अन्तस्तल में विद्यमान वासना रूपी वनिता ही वास्तविक बेडी है , बाह्य स्त्री नहीं । वह तो अन्तरंग की कमजोरी में निमित्त मात्र ही है ।******

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