गुरुवार, 26 मई 2011

कल्पना से सुविचार को मजबूत कीजिये

कल्पना से सुविचार को मजबूत कीजिये                                                                                                                                            





एक पुरानी कथा है कि एक व्यक्ति जंगल से गुजर रहा था । भूख-प्यास से बेहाल हो गया । गर्मी और थकान से हारा वह व्यक्ति एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठ गया । उसे यह पता नहीं था कि वह जिस वृक्ष के नीचे बैठा है , वह कल्प-वृक्ष है । गर्मी से राहत मिली तो सोचा कि यदि कहीं से खाना मिल जाता । अचानक उसके सामने सुस्वादु भोजन का थाल और जल से भरा मटका उपस्थित हो गया । उसने पेट भर खाना खाया और पानी पीया । अब उसका दिमाग चलने लगा । उसके भीतर डर और आशंकाएं सिर उठाने लगीं । उसने सोचा , हो न हो , इस पेड़ पर कोई भूत रहता होगा , जिसने यह चमत्कार किया । तब तो यह भूत पेड़ से कूदकर मुझे खा जायेगा । उसके इतना सोचने पर भर की देर थी कि पेड़ से एक भूत कूदा और उसे खा गया । निश्चित रूप से यह कथा कपोल-कल्पित है , लेकिन इसमें जीवन का मर्म निहित है ।



 कोई भी नकारात्मक विचार यदि हम मन में बैठा लें , तो वह हमें पूरी तरह नकारात्मक बना देता है । और सच मानिये यह छवि लोगों को अच्छी नहीं लगती । लोग हमसे कटते चले जाते हैं । इसके विपरीत सकारात्मक विचारों से हम अपने अंतस और व्यक्तित्व को तो निखारते ही हैं और लोगों को भी अपने पक्ष में जोड़ लेते हैं और सुख के भागी बन जाते हैं ।


सकारात्मक विचारों के प्रवाह से हम मन को परिष्कृत करते हैं । मन तभी परिष्कृत होगा , जब हम अपनी कल्पना-शक्ति से सकारात्मक विचारों का सृजन करने लगेंगे । 


सकारात्मक कल्पनाओं को संकल्प में बदलकर हम मन को साध लेते हैं । फिर मन कल्पवृक्ष की तरह सदैव अच्छे परिणाम देने लगता है । ओशो के अनुसार _ मन कम्प्यूटर की भांति अतीत के अनुभवों और सीखी गयी जानकारियों का एक यंत्र है , जो जीवन में नई सम्भावनाओं के द्वार खोलता है । ' अत: स्पष्ट है कि जब हमारी कल्पना-शक्ति संकल्प-शक्ति में परिणत हो जाती है तो मन कल्पवृक्ष बन जाता है और इच्छित फल देने लगता है। हमें मात्र अपने भीतर के डर , अहंकार , लोभ इत्यादि की कुप्रवृत्तियों को बस दूर करना होगा ।******





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