शुक्रवार, 13 मई 2011

आत्म- विश्वास

आत्म- विश्वास 





अपने आप पर यदि हम विश्वास नहीं है तो सफलता हम से कोसों दूर रहती है । विश्वास ऐसी शक्ति है जो हमें कठिनाइयों में सम्बल प्रदान करता है और हमारा मार्ग-दर्शन करता है । हमें प्रेरणा और उत्साह से भर देता है। प्रहलाद को विश्वास था तो पत्थर के खम्भे से प्रभु प्रकट हुवे और उनके हाथों हिरण्यकश्यप का वध हुवा । वास्तव में विश्वास ही फल का देने वाला है _ ' विश्वासं फल दायकं ' । यदि हमें अपनी कार्य-क्षमता पर , अपने आराध्य पर विश्वास है तो निश्चय ही सफलता हमारे कदम चूमेगी । अपने विश्वास के बल पर ही कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की वैज्ञानिक चन्द्रमा और मंगल पर पहुँचने में सफल हो सके ।


श्रीराम पर अटूट विश्वास होने के कारण ही गोस्वामी तुलसी दास ' रामचरितमानस ' जैसी काल-जयी रचना कर सके । हमारी आंतरिक दृष्टि और हमारा विश्वास उन शक्तियों और साधनों को देख लेते हैं , जो भय तथा शंकाओं के कारण हमारी बाह्य आँखों से ओझल रहते हैं । हमारी आंतरिक दृष्टि में दृढ़ विश्वास छिपा रहता है। उसे अच्छी तरह मालूम होता है कि हमारा वास्तविक मार्ग कौन-सा है ? और जो कठिनाइयाँ उस मार्ग पर चलते समय हमारे सामने आएँगी , उनका निराकरण किस प्रकार किया जा सकेगा ?


हम अपने को किसी भी के काम के अयोग्य न समझें , किसी भी संदेह को अपने मन में स्थान न दें और विश्वास रखें कि हम जिस काम को करना चाहते हैं , उसे पूरा करने की हममें योग्यता , शक्ति और सामर्थ्य है । यह विश्वास ही हमें सफल बनता है । साथ ही स्वयं के विश्वास के साथ-साथ हमें परमात्मा पर भी विश्वास करना चाहिए । आत्मा परमात्मा से जुड़ी है और जीव उसी का अंश है । अत: हमारा लक्ष्य उसी के पास पहुंचना है और उसी में विलय होना है । यह विश्वास हमें सद्कर्मों में प्रवृत्त करता है और जिससे प्रभु तक पहुँचने का हमारा मार्ग प्रशस्त होता जाता है । विश्वास मानव को मानव के निकट लाता है । संकट के समय विश्वास संजीवनी का कार्य करता है । हमें चाहिए कि हम विश्वास को अपने आचरण और व्यवहार में अधिक से अधिक लायें ।******



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