रविवार, 8 मई 2011

त्वमेव माता च

त्वमेव माता च 


वेदव्यास ने कहा था _ ' नास्ति मातृवत  छाया , नास्ति मातृवत गति: ।  त्राणं, नास्ति मातृवत प्रिया ' अर्थात माता के समान कोई छाया नहीं है , माता के तुल्य कोई सहारा नहीं है । माता के सदृश कोई रक्षक नहीं तथा माता के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं है । सन्तति-निर्माण में माता की भूमिका पिता से हजार गुना अधिक होती है । माता के रूप में नारी अम्बा है , सन्तान -निर्मात्री है , दया है , क्षमा है , कल्याणी है। तथा माता के समान त्याग ईश्वरीय सत्ता के अतिरिक्त कोई और नहीं कर सकता ।


 मां सर्वव्यापक सत्ता की प्रतिमूर्त्ति है । राम , कृष्ण , गौतम , शिवाजी , सुकरात , अरस्तु जैसे महापुरुषों के जीवन में छलकने वाली संवेदना , प्राण और प्रकाश उनके जीवन में उनकी मां के संस्कारों का ही फल था । नारी मां के रूप में रक्षक , मित्र और गुरु के रूप में हमारे लिए शुभ कार्यों की प्रेरक है । भारतीय जन-जीवन में मातृरूपा नारी की सर्वोच्च प्रतिष्ठा इसी से स्पष्ट है कि यहाँ का हर आस्तिक मनुष्य देवाधिदेव को अपना सर्वस्व मानते हुवे सर्वप्रथम उनकी वन्दना माता रूप में इस प्रकार करता है _ ' त्वमेव माता च पिता त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव सर्वं मम देव देव: ॥ '

नारी मां के रूप में सबसे महान है । वह बच्चों पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है । आपने देखा होगा दुःख और कष्ट के क्षण में ही बस ' मां ' ही निकलता है । मां किसी भी दशा में सन्तान का बुरा नहीं मानती एवं सोचती। मां जैसा वात्सल्य और कहाँ मिलेगा ? ' माता शब्द में न जाने कैसा ईश्वर ने माधुर्य प्रदान किया है कि जिस शब्द में वह जब जा मिलता है , उसी में एक अपूर्व सरलता , विचित्र माधुर्य तथा ह्रदय-ग्राही प्रभाव उत्पन्न कर देता है । इस शब्द का उच्चारण करते ही ह्रदय आनन्द से गदगद हो जाता है । माता की महिमा अवर्णनीय है । मां की सेवा से पुरुष-समाज कभी ऋण -मुक्त नहीं हो सकता । मां का प्रेम निस्वार्थ होता है । ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ , अनुपम महान कृति मां है , जी सदा , सर्वथा एवं सर्वदा वन्दनीय है , ऐसी पूजनीय मां को शत-शत नमन ।*******

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