शनिवार, 14 मई 2011

परोपकार


परोपकार 


द्वारा अर्जित पुण्य कभी नष्ट नहीं होता । धन , वैभव , मान , प्रतिष्ठा आदि सदैव एक से नहीं रहते इनके लिए परिमार्जन की आवश्यकता होती है , किन्तु परोपकार का प्रतिफल सुदीर्घ अवधि तक मिलता है और वह ह्रदय को स्थायी शांति प्रदान करता है । सभी जगह धन काम नहीं आता , ऐसे अवसर भी आते हैं जब धन धरा रह जाता है और व्यवहार से काम बन जाता है ।

समृद्धिशाली समाज की संरचना में परमार्थ की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है ।  सज्जन व्यक्ति सबका प्रिय होता है , प्रभु सदैव सज्जन के निकट होते हैं । मानवता और सज्जनता एक दूसरे के पूरक हैं । मानवता की गरिमा जरूरतमंदों , पीड़ितों और असहायों की सेवा करने में है । मानवता हमें जीवन की वास्तविकता से भलीभांति परिचित कराती है । प्रतिकूल परिस्थितियों से हमारा आत्मबल हमें परिस्थितियों से बाहर निकलने में हमारी सहायता करता है । परोपकार मानव-जीवन को सार्थक करने का एक अवसर है , हमें इसे व्यवहार में लाना होगा ।******



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