शनिवार, 28 मई 2011

छोड़ने में ही शांति


छोड़ने में ही शांति 


                                                          

शांति जीवन का आधार है । वैदिक प्रार्थना में शांति का अत्यधिक महत्त्व है । वैदिक साहित्य में शांति -पाठ के अंतर्गत समस्त ब्रह्मांड के सुख एवं शांति की प्रार्थना की गयी है । 

शांति वहां है , जहाँ मुक्त लोग निवास करते हैं ।शांति तो अंतर्मन की आवाज है , जो अंदर में खोजने से उपलब्द्ध होती है । गीता के अनुसार _ जो अशांत है तो उसे सुख कहाँ से मिलेगा ? 

 एक कथा है _ ' एक बार भगवान ने सब भक्तों को अपने पास से कुछ न कुछ देने को बुलाया । सब मानव आये । भगवान ने सबको सब कुछ दिया । मानव अपनी झोली फैलाये सब कुछ ले रहे थे। सब बहुत खुश थे । भगवान जब दे रहे थे , उस समय एक वस्तु नीचे गिर गयी ।भगवान ने उस पर अपना पैर रख दिया । लक्ष्मीजी ने देख लिया । जब सब मानव चले गये तो तब लक्ष्मीजी ने पूछा _ ' आप अपने पैर के नीचे क्या चीज दबाये खड़े हैं ? ' प्रभु ने कहा _ ' वह शांति है । '

 प्रभु ने सब कुछ दिया , पर शांति अपने पैर के नीचे छुपा कर रख ली । शांति के लिए प्रभु की शरण में जाना पड़ता है । शांति त्याग करने से मिलती है ।

                                                           
                                     

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