मंगलवार, 10 मई 2011

जीवन एक खेल

जीवन एक खेल 



एक लघु बीज से विशालकाय वृक्ष का जन्म होता है । बीज अंकुरित होने और विशालकाय वृक्ष का रूप धारण करने के पहले उसके बीज को धरती के अंदर कुछ देर गड़े रहना पड़ता है तब वह कहीं जाकर वह बीज वृक्ष के रूप में फिर से जीवन ग्रहण करता है । अर्थात एक प्रकार से उसे अपना अस्तित्व समाप्त करने के लिए तैयार रहना पड़ता है । हमारे सामान्य जीवन में भी वह अद्बुत लीला चलती रहती है । जीवन में छोटी-सी- छोटी सफलताओं का भी अर्थ है । प्रत्येक महान उपलब्द्धि के पीछे वश में की गयी जटिल कठिनाईयों , रौंदी हुयी बाधाओं तथा दबाई गयी आपदाओं का इतिहास छुपा रहता है ।

जीवन एक खेल है । किसी भी खेल में जीत केवल एक पक्ष की ही होती है । खेल पूरी ईमानदारी के साथ खेला जाये , यह मुख्य शर्त है । इसके अतिरिक्त आदर्श खिलाड़ी का गुण होता है कि वह जीत -हार दोनों दशाओं में खेल-भावना नहीं छोड़ता । जीतने वाला निष्कपट भाव से विजयश्री को प्राप्त करे और पराजित खिलाड़ी अपनी पराजय से कुंठित न हो । यदि ऐसा न हुवा तो खेल के परिणाम होंगे _ प्रतिशोध , रोष और भ्रान्ति । कभी-कभी पराजय इतनी गम्भीर होती है कि उसे स्वीकार कर पाना सहज नहीं होता । मानव-स्वभाव ही ऐसा है कि वह विजय के गर्व से झूम उठता है । चाहे वह सामान्य स्तर की विजय क्यों न हो , उसका प्रफुल्ल होना स्वाभाविक है।

विजय ही सब कुछ नहीं है । ऐसा भी होता है कि पराजय से हम बहुत कुछ सीखते हैं । खेल की भावना से हारने वाले मनुष्यों में से ही उत्कृष्ट विजेता निकलते हैं । जीवन हमें कैसी भी विपत्तियों का सामना करना पड़े , उनसे विचलित नहीं होना चाहिए । खतरों को झेलने के लिए सदैव तत्पर रहें । अधिक सम्भावना यही है कि हमारी ही विजय होगी । सफलता अर्जित करने का यह एकमात्र मार्ग है । सफलता का द्वार खोलने के लिए दो प्रकार की कुंजियों की आवश्यकता होती है । पहली कुंजी है दृढ़ इच्छा शक्ति और दूसरी है कठोर श्रम-साधना । दृढ़ इच्छा शक्ति के बिना सफलता की कामना नहीं की जा सकती और कठोर श्रम-साधना के अभाव में विजयश्री अर्जित नहीं की जा सकती ।***********




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