सोमवार, 16 मई 2011

विश्वास

विश्वास  


सम्पूर्ण संसार का व्यवहार ही नहीं , अपितु मोक्ष -मार्ग का या मुक्ति-द्वार भी विश्वास की आधारशिला पर आधारित है । विश्वास वह आधार-स्तम्भ है , जिस पर मुक्ति रूपी अनुपमेय महल अवस्थित है । जिस व्यवसायी पर विश्वास हो जाता है तो उसे  लाखों -करोड़ों का भी लाभ  हो जाता है । जिस कम्पनी पर विश्वास बन जाता है तो हम आँख मींचकर उससे निर्मित वस्तुओं का क्रय कर लेते हैं । विश्वास के आधार पर डाक्टर पर अपना जीवन सौंप देते हैं । अर्थात शादी-विवाह , व्यापार-व्यवसाय आदि सम्पूर्ण कार्य विश्वास के आधार पर ही संचालित होते हैं ।

अस्तु , ध्यान देने योग्य यह है कि आज तक हमने जड़ पदार्थों पर पर ही विश्वास किया । साथ ही क्षण - भंगुरता , शारीरिक साधनों एवं भौतिक साधनों पर ही विश्वास किया । क्या मात्र बाह्य प्रयोजनों की सिद्धि करने में ही अपना समय व्यर्थ में ही नष्ट कर देंगे ? ये सांसारिक विश्वास अनेक बार अविश्वास में भी बदल गये । जिसके कारण हमें मर्मान्तक पीड़ा भी सहन करनी पड़ी है । विश्वास-पात्र मित्र आदि खोजने में और स्वयं को दूसरों का विश्वास पात्र बनने में ही लगे रहे । हमें एक बार चिन्तन करके देखना चाहिए कि जिन पर हमारा आज विश्वास है , क्या वह स्थायी बना रहने वाला है ?

यदि वास्तव में विश्वास करना ही है तो व्यवहार से देव एवं शास्त्रों के प्रति करना चाहिए । निश्चय से स्व-आत्मा के प्रति , स्व-गुणों के प्रति , मोक्ष-मार्ग और मोक्ष-मार्गियों के प्रति अपना विश्वास स्थापित करें । तभी स्व-अनुभति से मिलन सम्भव हो पायेगा ।*****




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