गुरुवार, 26 मई 2011

मुस्कुराते रहिये

मुस्कुराते रहिये 

                                           

भय और आत्महीनता की ग्रन्थि को मन से निकालकर जिस सीमा तक मन को खोल सकें उसको खोलें। मन की बात कहें और दूसरों को भी यह अवसर दें कि वे भी मन की बात कह सकें । अपनी प्रसन्न एवं संतुष्टि व आशान्वित मनोवृत्ति का परिचय प्रकट होने दें । इससे मनुष्य का गौरव बढ़ता है । इस बात का परिचय भी मिलता है कि उसके भीतर खोखलापन या खालीपन नहीं है ।


कहते हैं कि जब मनुष्य हंसता है तो मोती उगते और फूल झरते हैं । इस प्रसाद को पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति लालायित रहता है । हंसते हुवे मनुष्य को देखकर देखने वाले प्रसन्नचित्त हो जाते हैं । ठीक उसी प्रकार कैसे रोते को देखकर रोना आ जाता है । यह बिना पूंजी का उपहार है , जिसे किसी को भी कितनी ही देर तक कितनी ही मात्र में दिया जा सकता है । किसी के दांत प्रकृति ने कैसे ही क्यों न बनाये हों , पर जब वे खिलते हैं तो सहज सौन्दर्य से भर जाते हैं । मुस्कुराने का स्वभाव मानसिक स्वास्थ्य को विद्यमान रखने और दूसरों को वही उपहार बांटने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है । इसे विकसित करने के लिए व्यायाम या योगाभ्यास की भांति इसे प्रारम्भ किया जा सकता है ।*****

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