शुक्रवार, 20 मई 2011

बिन सत्संग विवेक न होई ,

 ' बिन सत्संग विवेक न होई ,







भगवान राम ने अरण्य में विचरते हुवे संसार को बहुत उपदेश दिए । पूरा ' अरण्य काण्ड ' इन उपदेशों से ओतप्रोत है। इसी कड़ी में भगवान ने दुष्टों के कुछ लक्षण बताये , जो प्रमुख रूप से दम्भ , हिंसा , अपवित्रता , अस्थिरता , चंचल चितवन , इन्द्रयों की विषयों में आसक्ति , अहंकार , ईष्ट और अनिष्ट की प्राप्ति में हर्ष व शोक , भक्ति का अभाव तथा एकांत में मन न लगना है । इनमें से कुछ दुर्गुण व्यक्ति को हानि पहुंचाते हैं तथा समाज को दुःख भी प्रदान करते हैं । दूसरों को उनकी गलतियों के लिए क्षमा न करना तथा बदले की भावना से अशांत रहना है । इससे आस-पास का परिवेश अशांत हो जाता है । इसी प्रकार अकारण दूसरों की जीवन-शैली में झाँकने का प्रयास करना और परिणामत: हिंसा देखने को मिलती है ।

सांख्य-योग की व्य्याख्या के अनुसार हमारा शरीर सत्रह तत्वों से निर्मित है । इसमें पांच महाभूत _ पृथ्वी , आकाश , अग्नि , वायु और जल ; पांच ज्ञानेन्द्रियाँ _ चक्षु , नासिका , कर्ण , रसना व स्पर्श ; पांच कर्मेन्द्रियाँ _ हाथ , पैर , वाक् , जननेंद्रिय एवं मलेंद्रिय तथा मन एवं बुद्धि शामिल हैं । इनमें सोलह तत्व सभी जीवों में समान होते हैं , परन्तु मन तत्व जीव अपने पूर्व जन्म से लेकर आता है ।

आत्मा के शरीर छोड़ने पर साथ ही संचित कर्मों व संस्कारों का लेखा-जोखा रखने के लिए मन तत्व आत्मा के साथ नये जीवन में प्रवेश करता है । देखने में आया है कि कुछ लोग अज्ञानता वश अपने बुरे कर्मों व प्रवृत्ति को भी भगवान की देन मानते लगते हैं , जो पूर्ण रूप से पूर्णत: गलत है । मनुष्य अपने पूर्व जन्मों के प्रारब्ध के कारण अच्छे-बुरे कर्म करता है । भगवान ने कहा है कि मनुष्य को विवेक का सहारा लेना चाहिए । विवेक की प्राप्ति के बिना सत्संग नहीं हो पाता । क्योंकि _ ' बिन सत्संग विवेक न होई , बिन हरि कृपा सुलभ न सोई । '

सत्संग को हम अपने घरों और कार्यालयों या कार्य-स्थल पर भी कर सकते हैं । माता-पिता को भी सत्प्रवृत्तियों का होना चाहिए । इसलिए उन्हें भी नई पीढ़ी को अच्छे रास्ते पर चलाने के लिए अपने बुरे कर्मों को छोड़ना चाहिए तथा अपने बच्चों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए । जिससे युवा पीढ़ी अपने विवेक को निर्मित कर सके तथा संस्कारों से आत्म-कल्याण और सर्व-कल्याण कर सके । अस्तु , सत्संग का महत्त्व सर्व विदित है , इससे व्यक्ति जीवन-सागर से भी पार जा सकता है ।******

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