शुक्रवार, 27 मई 2011

रखो डोर को खींच के

रखो डोर को खींच के 





 जीवन में सहनशीलता के अभाव में बात बढ़ जाती है और उसके परिणाम भयंकर होते हैं । सहनशीलता के अभाव में समाज और परिवार एवं व्यक्ति को जन-माल की जो क्षति होती है उनके आंकड़े एकत्रित किये जाएँ तो परिणाम चौंकाने वाले होते है ।मनुष्य  जब सहनशीलता को त्यागता है , तब वह क्रोध और अशांति से अपने को घिरा पाता है ।


सहनशीलता और संयम का दूसरा पहलू है कि मनुष्य के जीवन में कभी रोग , कभी शोक , कभी पराजय और कभी हानि की स्थिति आती रहती है । मनुष्य यदि ऐसी परिस्थितियों को सृष्टि रूपी नाटक के विभिन्न दृश्यमान पर संयम से काम लेता है तो उसके स्वास्थ्य और मन पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता । जो इन्हें खेल की दृष्टि से नहीं देखता और न ही उन्हें वर्तमान पुरुषार्थ की कमी का अस्थायी परिणाम मानकर उत्साह पूर्वक इनका सामना करने की बात नहीं सोचता ।वह अपना स्वास्थ्य , स्मरण-शक्ति , मनोबल और अपनी शांति गंवा बैठता है । 

अत: मनुष्य को चाहिए कि वह अपने उत्कर्ष के अनमोल साधन सहनशीलता को अपनाये । संयम एक ऐसा गुण है , जो व्यक्ति की कार्य-क्षमता बढ़ाता है और उसे आगे ले जाता है , उसे सम्पूर्णता प्रदान करने में मदद करता है । *****

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