रविवार, 22 मई 2011

पश्चाताप

पश्चाताप




जब किसी से कोई अनुचित कार्य हो जाता है तो वह एकांत में रोता है और इस मनोवृत्ति को पश्चाताप कहा गया है । इस अनुचित कार्य के बदले वह लोकहितार्थ कार्य करता है । वह स्वयं को दंडित करके दोषमुक्त होने का प्रयास करता है । यही पश्चाताप है । 

कुछ लोग काफी अन्तराल के बाद पश्चाताप करते हैं । उन्हें दैवीय अहित होने पर स्मरण होता है कि हमने यह कुकृत्य किया था और उसी के प्रतिफल में यह व्यथा मिली ।  किसी भी कुकृत्य और अनुचित कार्य का दंड पश्चाताप ही है । राम ने सीता की अग्नि -परीक्षा ली । अपनी जीवन-सहचरी का निष्कासन किया । सीता ने अंतत: माँ धरती से अपनी गोद में लेने की प्रार्थना की । धरती ने उन्हें अपनी गोद में समेट लिया । फिर राम ने पश्चाताप किया , जो अद्वितीय है । राम ऐसा रुदन करते हैं कि इतना कोई नहीं रोया होगा ।

पश्चाताप का मनोविज्ञान जानना बड़ा कठिन है । रावण ने पश्चाताप नहीं किया तो विनाश अपना ही नहीं अपितु सारी राक्षस जाति का विनाश कराया । अतएव पश्चाताप के उपाय को आत्मसात करने का सिद्धांत वन्दनीय है । *******

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