सोमवार, 16 मई 2011

बुद्ध और करुणा

  बुद्ध और करुणा





चार आर्य सत्य हैं _ मनुष्य दुःख में है । दुःख का कारण मिटाया जा सकता है । एक ऐसी दशा भी है , जब दुःख नहीं रह जाते । संसार परिवर्तनशील है । जन्म , मृत्यु , यौवन और वृद्धावस्था चक्र के आरे जैसे नीचे से ऊपर होते रहते हैं । परिवर्तन न होने का विश्वास नेत्र-हीन ही करते हैं । परिवर्तन शाश्वत है । सनातन की खोज का नाम ही धर्म है । यही ध्यान -समाधि , शांति या निर्वाण है । जिसने यह सत्य जान लिया , उसने सर्वस्व जान लिया ।

बुद्ध कहते हैं _ ' तुम अपने स्वामी स्वयं हो । जीवन की बागडोर अपने हाथ में रखकर ही क्रांति लायी जा सकती है। ' उन्होंने भिक्षुओं से कहा _ ' मैं तुम्हारा गुरु नहीं हूँ । मैं तुम्हारा मित्र हूँ । मैं कभी यदि तुम्हें कड़वे और चोट पहुँचाने वाले शब्द कहता हूँ तो करुणा के कारण , जिनसे तुम जाग जाओ । '

विष्णु के दशावतारों में नवें अवतार के रूप में बुद्ध की करुणा मूल कारण रही । सामाजिक समरसता , एकता व मानवता की स्थापना में बुद्ध ने जीवन अर्पित कर दिया । निस्वार्थ मानव-सेवा करने वाले ही अवतार के रूप में जाने जाते हैं । जीवन को सुंदर बनाने और ऊंचा से ऊंचा उठाने में महापुरुष करुणा लोक-मंगल करते हैं । महानता में अहिसा और सत्य के ही बीज रहते हैं ।*****



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