रविवार, 8 मई 2011

राम रोष पावक सो जरई


राम रोष पावक सो जरई



भगवान स्वयं कहते हैं कि सब मेरे अधीन हैं । गोस्वामी तुलसीदास मानस में इस सत्य की पुष्टि करते हैं कि दुनिया राम का जप करती है पर राम स्वयं भरत का नाम जपते हैं । महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण संजय को स्पष्ट संदेश देते हैं कि धृतराष्ट्र को बता देना कि अर्जुन का मित्र मेरा मित्र है और उनका शत्रु मेरा शत्रु है । प्रभु का कोई सीधे अपमान कर दे तो उन्हें रोष नहीं आता , क्योंकि उनका स्वभाव ही ऐसा है कि ' सबहि मानप्रद आप अमानी । ' परन्तु यदि उनके भक्त को कोई अपमानित कर देता है तो ' राम रोष पावक सो जरई । ' बाली का वध करने के बाद भगवान राम ने इससे यही कहा था _ ' मम भुजबल आश्रित तेहिं जानी । मारा चाहसिं मूढ़ अभिमानी । '


वेद-शास्त्र की स्पष्ट मान्यता है कि प्रभु समदर्शी है , न तो उनके मन में राग है और न ही द्वेष । गोस्वामीजी ने भी मानस में यही कहा है _ ' जद्यपि सम नही राग न रोषू । ' यह बात सुनने में अटपटी लग सकती है की समदर्शी प्रभु भी पक्षपाती है , क्योंकि वे भक्त के साथ सम प्रेम का व्यवहार करते हैं और अभक्त के साथ विषम अर्थात क्रोध का व्यवहार करते हैं , परन्तु ऐसा नहीं है । परमात्मा तो सर्वत्र समभाव से विराजते हैं । बिना किसी भेद-भाव के उनकी कृपा सब पर निरंतर बरसती रहती है । जिनका ह्रदय विकारों से खाली है वह प्रभु की करीना से भर जाता है और मलिन ह्रदय इससे वंचित रह जाता है ।

 भगवान का आश्वासन है कि जो भक्त निश्छल भाव से मेरी शरण में आता है उसका निश्चित रूप से ही योगक्षेम है । बादल निष्पक्ष भाव है ऊष्णता । जो अग्नि के सम्मुख खड़ा है , वह सर्दी की पीड़ा से मुक्त है और जो विमुख है तो वह सर्दी से परेशान है । अग्नि का न किसी से राग है और न ही द्वेष । इसी तरह सच्चिदानन्द के सम्मुख जिसका ह्रदय खुला है , वह प्रकाश , शांति और आनन्द से भर जाता है ।*********

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