शुक्रवार, 6 मई 2011

चित्त-वृत्तियों का यह निरोध

चित्त-वृत्तियों का यह निरोध 

शास्त्रों एवं पुराणों में जीव की शारीरिक एवं आत्मिक उन्नति के लिए ऋषि एवं महर्षियों ने अपने ज्ञान अनुभव के आधार पर अनेक सिद्धांतोंका प्रतिपादन किया है , इनको सूत्र भी कहा जाता है ।  महर्षि पतंजलि का योग-सूत्र अर्वाचीन भारत में भी संतों , महात्माओं , मनीषियों , विद्वानों आदि के लिए मार्गदर्शक रहा है । 

इस योग-सूत्र में यम-नियम , आसन-प्राणायाम , प्रत्याहार -धारणा , ध्यान-समाधि आदि की विशद व्याख्या की गयी है । सतत अभ्यास से इन्हीं सूत्रों के माध्यम से मनुष्य शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं आत्मिक क्षेत्र में आध्यात्मिक नैतिक प्रगति के पक्ष पर अग्रसर हो जीवन की सफलता के उच्च मानक प्राप्त कर सकता है । योग- सूत्र के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है । चित्त-वृत्तियों का यह निरोध अभ्यास और वैराग्य से ही प्राप्त किया जा सकता है । प्रारम्भिक अवस्था में अवश्य ही कुछ कठिनाई का अनुभव होता है , किन्तु दृढ़ संकल्प के साथ मनोबल एवं इच्छा-शक्ति की प्रबलता लक्ष्य तक पहुँचने में सहायक सिद्ध होती है ।*********



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