बुधवार, 4 मई 2011

विश्वास की शक्ति

 विश्वास की शक्ति



विश्वास मन से उपजता है । मन द्वारा स्वीकार करने की प्रक्रिया है। मानना या न मानना हमारे मन पर ही निर्भर करता है , जिससे प्रेरित होकर हमारे विचार उपजते हैं । 

 क्योंकि मानने से पहले जानना आवश्यक नहीं , बल्कि जानने से पहले मानना हमें आवश्यक है । बीजगणित में कोई इक्वेशन हल करने के लिए हमें मानना पड़ता है कि पहली संख्या ' ए 'है , तभी अंत में ए का मान निकल पाता है. यानि हम ए को अंत में जान पाते हैं । यही बात अध्यात्म में भी है. हम ईश्वर को जानने के लिए पहले उसे मान लेते हैं , तब उसका 'मान ' या शक्ति का पता चलता है । इसी को विश्वास कहते हैं। 


 जब हम स्वयं पर विश्वास करने लगते हैं , तो हमारे भीतर विश्वास की शक्ति उत्पन्न होती है । धीरे-धीरे हम मित्रों , परिजनों से होते हुवे ईश्वर तक पर विश्वास करने लगते हैं । यह विश्वास निरर्थक नहीं होता , अपितु हमें अच्छे कर्मों  के लिए प्रेरित करता है । समाज में सुख-शांति तभी सम्भव है जब हर व्यक्ति अपना उत्तरदायित्व समझे । गलत चीजों को अस्वीकार कर दें । नैतिकता का मूल्य माने । यदि हमारा विश्वास है कि ईश्वर न्यायशील है तो हम गलत कर्म करने से पहले कई बार सोचेंगे। *******




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