शनिवार, 21 मई 2011

संघर्ष

संघर्ष 




मानव-जीवन अत्यंत संघर्षशील है । प्रत्येक दिन कोई न कोई समस्या उसके जीवन में प्रतिक्षण जल की लहर के समान उत्पन्न होती रहती हैं । कुछ का सामना व्यक्ति सहज में कर लेता है और कुछ समस्याओं से जूझते-जूझते उसका जीवन ही समाप्त हो जाता है , पर समस्या समाप्त नहीं होती ।

सी समस्याओं से संघर्ष करते करते हुवे कभी-कभी मन हताश होने लगता है , और वह अन्य विचारों से ग्रसित हो जाता है । वह इस प्रकार के जीवन से मृत्यु की कामना करने लगता है ।  । पर यह वीरता नहीं अपितु कायरता है ।

हमें उन महापुरुषों के जीवन की ओर निहारना चाहिए , जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष ही संघर्ष झेले हैं। वे आपत्तियों को आभूषण मानकर उन्हें अंगीकृत किए रहे और जूझते हुवे अपने लक्ष्य को पा गये । सच पूछा जाये तो यह जीवन एक हीरे के समान है , जो कसौटी पर कसकर ही दमकता है । गुलाब काँटों में ही मुस्कुराता है।

सत्य है कि जिनके जीवन में आपत्तियां नहीं आतीं वास्तव में उन्हें जीवन का आनन्द ही नहीं मिलता । संघर्षों की भट्टी में तपकर ही जीवन सोने -सा खरा उतरता है । दूसरी बात जिस तरह ग्रहण चाँद और सूरज पर ही लगता है , पर तारों पर नहीं । इसी तरह विपत्तियाँ भी महापुरुषों के जीवन में आती हैं , कायरों के 
जीवन में नहीं । अत: पूर्व कर्मों के उदय से प्राप्त संघर्षों को हार नहीं उपहार मान स्वागत करना चाहिए । ******

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें