यात्रा हो , परन्तु शून्य से महाशून्य की , परिधि से केंद्र की , अज्ञान से ज्ञान की , अंधकार से प्रकाश की और असत्य से सत्य की । स्वयं के अस्तित्व को तलाश कर ही हम जीवन के सही मूल्यों को समझ पाएंगे । हम प्राय: अपना जीवन कंकड़-पत्थर बटोरने में व्यर्थ गंवा देते हैं । सत्ता , सम्पत्ति एवं सत्कार प्राप्त कर भी अंतत: शून्य ही हाथ लगता है । तो हम क्यों न आज ही जग जाएँ और पुन: उठ खड़े हों । स्वयं की खोज करके हमें अपनी अंतरात्मा को प्रकाशित करना चाहिए ।
सोमवार, 9 मई 2011
स्वयं की खोज
यात्रा हो , परन्तु शून्य से महाशून्य की , परिधि से केंद्र की , अज्ञान से ज्ञान की , अंधकार से प्रकाश की और असत्य से सत्य की । स्वयं के अस्तित्व को तलाश कर ही हम जीवन के सही मूल्यों को समझ पाएंगे । हम प्राय: अपना जीवन कंकड़-पत्थर बटोरने में व्यर्थ गंवा देते हैं । सत्ता , सम्पत्ति एवं सत्कार प्राप्त कर भी अंतत: शून्य ही हाथ लगता है । तो हम क्यों न आज ही जग जाएँ और पुन: उठ खड़े हों । स्वयं की खोज करके हमें अपनी अंतरात्मा को प्रकाशित करना चाहिए ।
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