सोमवार, 9 मई 2011

स्वयं की खोज

स्वयं की खोज 


यात्रा हो , परन्तु शून्य से महाशून्य की , परिधि से केंद्र की , अज्ञान से ज्ञान की , अंधकार से प्रकाश की और असत्य से सत्य की । स्वयं के अस्तित्व को तलाश कर ही हम जीवन के सही मूल्यों को समझ पाएंगे । हम प्राय: अपना जीवन कंकड़-पत्थर बटोरने में व्यर्थ गंवा देते हैं । सत्ता , सम्पत्ति एवं सत्कार प्राप्त कर भी अंतत: शून्य ही हाथ लगता है । तो हम क्यों न आज ही जग जाएँ और पुन: उठ खड़े हों । स्वयं की खोज करके हमें अपनी अंतरात्मा को प्रकाशित करना चाहिए । 

हम बहिर्मुखी हैं , अन्तर्मुखी नहीं । बस यही हम सबको समझना है । सारी उलझन स्वयं को समझने में है। अपने परमपिता परमेश्वर के प्रति हम कृतज्ञता तक ज्ञापित नहीं करते , जिसने अपनी परम कृपा से हमें अपना ही अंश बनाकर इस धरा पर मनष्य के रूप में भेजा है । यदि हम स्वयं के प्रति थोडा-सा सचेत हो जाएँ तो बात बनते देर नहीं लगेगी । तमाम ऐसे लोग जिन्होंने जीवन में कुछ गौरवशाली कार्य किया , वे तभी स्वयं के अंदर छिपे अथाह सागर को समझने और मापने की बात करते हैं , जो कृत्रिमता से कोसों दूर हों और जहाँ गहन शांति हो । शांति में असीम शक्ति है , जिससे स्वयं के अस्तित्व को पहचानने की शक्ति प्राप्त होती है । साथ ही परमपिता परमात्मा की निकटता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है । निश्चय ही इसमें अद्भुत शक्ति है ।******

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें