बुधवार, 4 मई 2011

तपोबल

तपोबल




 शतपथ ब्राह्मण ' में कहा गया है _ ' तपसा वै लोकं जयति ' , अर्थात तप से संसार पर विजय प्राप्त की जा सकती है । मनुस्मृति के अनुसार _ संसार में जो कुछ भी दुष्प्राप्य है , वह सब तप से पाया जा सकता है । तप के सम्मुख कठिनता या दुर्लभता है ही नहीं । प्राचीन काल के ऋषियों , मुनियों , महर्षियों आदि का तपोबल सर्व विदित ही है । भगीरथ के तपोबल से ही गंगा का अवतरण हुवा था । तप से असम्भव को सम्भव करने की ल्श्मता आ जाती है । वसिष्ठ , विश्वामित्र , भृगु , अंगिरा , परशुराम , व्यास आदि अनेक ब्रह्मर्षियों के तपोबल के आख्यानों से पौराणिक साहित्य भरा पड़ा है । तप से अर्जित क्षमता असीम होती है । जितना अधिक तप , उतनी बड़ी उपलब्द्धि । तभी तो कहा गया है _ ' तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व ' , अर्थात तप से ही ब्रह्म को जानो , क्योंकि तप ही ब्रह्म है । भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने तपोबल से ही अपना अभीष्ट प्राप्त किया, जैसे अग्नि से तपाया गया सुवर्ण शुद्ध हो दमकने लगता है , उसी प्रकार कर्म-धातु में मिला हुवा शरीर तप की अग्नि में तपाने से तेजस्विता प्राप्त करता है ।*******

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