बुधवार, 4 मई 2011

ईश्वर का अस्तित्व

ईश्वर का अस्तित्व




कठोपनिषद के एक मन्त्र के अनुसार _ तत्व-ज्ञान के जिज्ञासु को सर्वप्रथम परमात्मा है , ऐसा मानकर और विश्वास कर साधना प्रारम्भ करनी चाहिए । तत्पश्चात उसकी प्राप्ति या साक्षात्कार अथवा अनुभव के लिए प्रयास करना चाहिए । जिस साधक को उसका साक्षात्कार हो जाता है , वह उसके प्रकाश से आलोकित हो जाता है । परमात्मा उसके ऊपर अपनी प्रसन्नता बिखेर देता है । वह ज्ञान से संतुष्ट और आनन्द से पूर्ण दिखाई पड़ता है । भगवान बुद्ध के चार शिष्यों ने पहले बुद्ध को त्याग दिया था , परन्तु सारनाथ में बुद्ध भगवान के पुन: मिलने पर उनके सिद्ध होने का विश्वास हो गया और वे पुन: उनके शिष्य हो गये ।

यानि आज हम जो बाह्य जगत देख रहे हैं उसी को सत्य मानकर रहे हैं । इस जगत के अतिरिक्त कोई अन्य सत्ता भी है जो इसका संचालन कर रही है , उसका विश्वास नहीं होता । यद्यपि हम मन्दिर भी जाते हैं , पूजा भी करते हैं , प्रवचन सुनते हैं ; परन्तु ह्रदय में ईश्वर के प्रति वह विश्वास नहीं है की वह है । वह हमारा हितैषी , सहृदय , पालक और रक्षक है । उस पर विश्वास न होने के कारण ही हम अपने को असुरक्षित भय और अभाव से ग्रस्त तथा दुखी अनुभव करते हैं और इसकी पूर्ति करने के लिए विविध प्रकार के दुष्कर्म , हिंसा , पर-परिग्रह द्वारा सुखी और सुरक्षित होने का प्रयास करते हैं ।

अपने जीवन में हम यह भी भूल जाते हैं की सर्वज्ञ व्याप्त परमात्मा हमें और हमारे प्रत्येक कार्य को देख रहे हैं । वे हमारी चेतना में स्पन्दित होकर हमें बुरे कार्यों से रोकने का भी इशारा भी करते हैं ; परन्तु हम उनकी अवहेलना करते हुवे अपने अहंकार को ही पुष्ट किया करते हैं । जितना हमारा अहंकार बढ़ता है , सत्य उतना ही दूर होता चला जाता है । अहंकार से रहित होने पर ही तो बुद्धि में आत्मतत्व प्रवेश करेगा । चारों पुरुषार्थ _ धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष को पाने का यही उपाय है । जो व्यक्ति ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है और विश्वास के कारण पाप करने से डरता है तथा उसे जानने या पाने का पूरे मन से प्रयास करता है और वही आस्तिक कहलाता है ।******

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