समझने और सीखने की नहीं होती उम्र
जीवन में सुधार की वृत्ति से लक्ष्य -प्राप्ति सहज हो जाती है । यह वृत्ति सकारात्मक मनोयोग से प्रवृत्त होती है । आदतों में सुधार , प्रकृति में परिवर्तन या मन की वृत्तियों का शमन _ ये सब घनात्मक प्रभाव हैं । तन-मन को ऋणात्मक प्रभाव से मुक्त रखना चाहिए ।
क्योंकि दूसरों का सुधार भी तभी सम्भव है , जब स्वयं का सुधार अभीष्ट हो । मानव जीवन के लिए संसार की अच्छाइयों की ओर ले जाने का सबसे सरल उपाय सुधार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । अवगुणों को त्यागने ओर गुणों को धारण करने की योजना को सुधार का क्रम कहा जा सकता है । जिन अवगुणों के कारण वह जीवन में संताप भोगता है , उनमें उसे भ्रमवश रस और आनन्द मिलता है ।
जीवन में सुधार की वृत्ति से लक्ष्य -प्राप्ति सहज हो जाती है । यह वृत्ति सकारात्मक मनोयोग से प्रवृत्त होती है । आदतों में सुधार , प्रकृति में परिवर्तन या मन की वृत्तियों का शमन _ ये सब घनात्मक प्रभाव हैं । तन-मन को ऋणात्मक प्रभाव से मुक्त रखना चाहिए ।
क्योंकि दूसरों का सुधार भी तभी सम्भव है , जब स्वयं का सुधार अभीष्ट हो । मानव जीवन के लिए संसार की अच्छाइयों की ओर ले जाने का सबसे सरल उपाय सुधार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । अवगुणों को त्यागने ओर गुणों को धारण करने की योजना को सुधार का क्रम कहा जा सकता है । जिन अवगुणों के कारण वह जीवन में संताप भोगता है , उनमें उसे भ्रमवश रस और आनन्द मिलता है ।
सफलता का सबसे अहं सूत्र यह सुधार ही तो है । अच्छी बातों को समझने और सीखने का अभ्यास ही सुधार का महायोग है । मनुष्य के अधीन सबसे सहज यंत्र आत्म-सुधार का है । इस यंत्र का महत्त्व मन्त्र से भी अधिक उपयोगी है । आत्म-सुधार में विश्वास और कर्म का मूल निहित है ।
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